*मन मैला और तन उजला करने से नहीं आती निर्मलता


। धम्म से शरीर स्वच्छ व निर्मल होता हैं,मन निर्मल होता है।*


एक बार भगवान बुद्ध श्रावस्ती में विहार करते थे। उस समय संगारव ब्राह्मण भी वहीं रहता था। वह पानी से शुद्धि होती हैं ऐसा मानने वाला था और पानी से शुद्धि का अभ्यास करता था। प्रायः रात-दिन स्नान करना ही उसकी आदत बन गई थी।


एक बार आनंद थेर प्रातःकाल श्रावस्ती में पिंडपात के लिए निकले। श्रावस्ती में भिक्खा ग्रहण करके भोजन कर चूकने के बाद लौटकर, आनंद तथागत के पास पहुंचे, अभिवादन किया और एक ओर बैठ गए और कहा :-


भगवान ! यहां श्रावस्ती में संगारव ब्राह्मण रात-दिन  पानी से स्नान करके अपने को शुद्ध करने में विश्वास रखता हैं। भगवान ! अच्छा हो यदि आप संगारव पर अनुकंपा करके सही मार्ग दिखाए।


दूसरे दिन प्रातःकाल तथागत संगारव ब्राह्मण के घर जा पहुंचे।संगारव ने तथागत का अभिवादन किया और एक ओर करबद्ध होकर बैठा। बैठे हुए ब्राह्मण को बुद्ध ने पूछा -


*"ब्राह्मण ! जैसा लोग कहते हैं क्या यह सच है कि तुम जल से शुद्धि में विश्वास रखते हो और रात-दिन स्नान करते रहते हो ?"*


"श्रमण गौतम ! हां, यह सच हैं।"


*"ब्राह्मण किस लाभ की आशा में तुम इस प्रकार रात-दिन स्नान करते रहते हो?"*


"हे गौतम!  यह इस तरह है कि दिन में मुझसे जो कुछ भी पाप कर्म होता है, मैं उसे उसी दिन सायंकाल स्नान द्वारा धो डालता हूँ। रात में मुझसे जो भी पाप कर्म होता है, उसे मैं अगले दिन प्रातःकाल उठते ही स्नान करके धो डालता हूँ। इस प्रकार रात-दिन स्नान करते रहने में मुझे यही लाभ दिखाई देता हैं।"


तब तथागत ने कहा :--


*"धम्म ही वह जलस्रोत हैं, जो स्वच्छ, निर्मल हैं। यहॉ जब व्यक्ति स्नान करने आते है,उनका प्रत्येक अंग शुद्ध हो जाता हैं और भवसागर पार करते लेते हैं।"*


*मन की शुद्धि सही शुद्धि है। मन मैला और तन उजला रहने से पाप धुलते नही 🙏🏻☸


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