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*अगर कोई ताकतवर समूह सुनियोजित और योजनाबद्ध हमला कर किसी खास वंचित सामाजिक समूह के दर्जनों लोगों को मारता है तो उसे क्या आतंकवादी घटना नहीं कहा जाना चाहिए❓*
*कुछ समय पहले आई एक फिल्म 'मुल्क' का एक दृश्य और डायलॉग का संदर्भ है अदालत में जज और प्रतिपक्षी वकील को संबोधित करती वकील और फिल्म की नायिका 🗣️कहती हैं टेररिज्म का डेफिनिशन क्या है❓ उच्च जाति के लोगों द्वारा नीची जाति के लोगों पर जुल्म टेररिज्म है या नहीं❓ या इस्लामी टेररिज्म के अलावा आप लोगों को कुछ और टेररिज्म लगता है कि नहीं है❓*
*प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदू आतंकवाद के नारे को चलन में लाने वालों को कठघरे में खड़ा करते हुए कुछ अलग पहलू से बात का सिरा भी दिया लोकसभा चुनावों में जीत के लिए अपने आखिरी सहारे के रूप में हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कहा कि हजारों साल का इतिहास है इसमें हिंदू आतंकवाद की एक घटना भी है❓*
*सवाल है कि ऐसा कहना हुआ कि वे देश के लोगों को आतंकवाद के शक्ल में परोक्ष रूप से सिर्फ वही याद रखने की हांक लगा रहे थे जो पिछले दो दशकों के दौरान आतंकवाद के रूप में पेश किया गया है❓ यानी इस्लामी आतंकवाद ❓अगर नरेंद्र मोदी का आशय यह नहीं है तो देश की आम जनता ने अपनी तस्वीरों से निकलते हुए अर्थों को अपनाया होगा❓*
*हो सकता है कि नरेंद्र मोदी के सामने उनकी चुनीवी राजनीति की लाचारी हो और इसलिए उन्होंने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के मकसद से ऐसी राय जाहिर की हो। लेकिन क्या वास्तव में वे हिंदुत्व को आतंकवाद के आरोप से मुक्त करना चाहते हैं ❓इसके लिए सुर्खियों में रहे कि संदर्भ का इस्तेमाल किया गया, जिसमें समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के कई आरोपी एनआईए कोर्ट से बरी हो गए समझौता एक्सप्रेस में एक ऐसी आतंकी घटना मानी जाती रही है जो प्रकृति में किसी भी बड़े आतंकी वारदात से कम नहीं थी यही कारण है कि इसमें शामिल आरोपियों को आतंकवादी के रूप में जाना गया था*
*लेकिन यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि ट्रायल कोर्ट ने इन सबके बारे में फैसला देते हुए साफ लहजे में यह कहा कि हमें इन आरोपों को छोड़ते हुए बेहद तकलीफ और क्षोभ का अहसास हो रहा है कोर्ट ने सही तरीके से सबूत इकट्ठा करके नहीं पेश करने और उसमें घोर लापरवाही बरतने के लिए एनआईए को बुरी तरह फटकार लगाई*
*यानी हिंदू आतंकवाद की जिसकी पहचान पर नरेंद्र मोदी और आरएसएस भाजपा गुस्सा जाहिर करते हैं जनता को इसका विरोध करने का आह्वान करते हैं उसके मुख्य संदर्भ पर भी खुद अदालत का सवालिया निशान है जिन मामलों में आरोपियों ने अपने गुनाह कबूल लिए थे उनमें एनआईए ने सबूत पेश करने में कमी क्यों की❓इस सवाल का जवाब शायद कभी सरेआम न हो लेकिन इसके अलावा भी देशभर में कई जगहों पर हुए बम विस्फोटों और आतंकी वारदात में जिन संगठनों के नाम आए उनकी पहचान हिंदू होने की है खासतौर पर सनातन संस्था का नाम आतंकी गतिविधियों के लिए छिपा नहीं रहा है स्वयं महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने कट्टर हिंदू समूहों पर आतंकवाद फैलाने के आरोपों में यूएपीए यानी आतंक रोधी कानून के तहत चार्जशीट दायर की थी*
*ये भविष्यवाणीयां आतंकवाद की कानूनी परिभाषा के तहत हुईं लेकिन इतर आतंकवाद को कैसे देखा जाए❓ क्या केवल कानूनी परिभाषा के तहत आने वाली आतंकी गतिविधियों वाले ही आतंकवाद हैं❓ आतंकवाद या आतंकी वारदात का स्वरूप और हासिल आखिर होता क्या है❓ किसी आतंकी हमले या बम विस्फोट में कुछ लोग मारे गए हैं तो निश्चित रूप से वह आतंकी घटना है*
*लेकिन अगर कोई एक समूह सुनियोजित और योजनाबद्ध तरीके से हमला करके किसी विशेष सामाजिक समूह के दर्जनों लोगों को बर्बरता से मार डालता है तो क्या उसे किसी आतंकी घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए❓*
*बिहार में बथानी टोला लक्ष्मणपुर बाथे जैसी कई जगहों पर एक खास जातिगत श्रेष्ठता के सिद्धांत और विचार के तहत सुनियोजित और योजनाबद्ध तरीके से दूसरे सामाजिक समूहों पर हमला किया और दर्जनों लोगों यहां तक कि बच्चों और महिलाओं को भी बेहद क्रूर तरीके से मार दिया काट डाला एक साथ इतने बड़े कत्ले आम की घटनाएं कैसे किसी आतंकी घटना से कम कही होगी❓ खैरलांजी मिर्चपुर गोहाना दुलीना आदि स्थानों पर दलितों पर हमले या फिर सरेआम बर्बरता से मारते जाने की घटनाएं किसी आतंकवादी खौफ से कम असर पैदा नहीं करती हैं लेकिन उन्हें आतंकवाद क्यों नहीं माना गया❓*
*झज्जर में मरी गाय का चमड़ा उतारते पांच दलितों को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला ऊना में मरी गाय का चमड़ा उतारते चार दलितों को सरेआम पीटा गया ❗मोहम्मद अखलाक पहलू खान जैसे कइयों की भीड़ के हाथों हत्या इस तरह की घटनाओं की अब लंबी कड़ी है जाति के दायरे को तोड़ कर प्रेम और विवाह करने पर प्रेमी जोड़ों की सामूहिक रूप से हत्या आतंकवाद है या नहीं❓*
*अलग अलग वजहों से दलित वंचित जातियों के खिलाफ व्यवहार और व्यवहारगत और संस्थागत रूप से क्रूर अमानवीय भेदभाव का लंबा इतिहास है जो आज भी जारी है ऐसी सभी घटनाएं कमजोर सामाजिक समूहों के मन में किसी भी आतंकी घटना से कम खौफ नहीं पैदा करतीं और वास्तव में उन्हें जातीय आतंकवाद के रूप में जाना चाहिए और अगर इस तरह की घटनाएं हकीकत हैं तो क्या हिंदू आतंकवाद' नहीं अमूर्त अवधारणा है❓*
*दरअसल ये घटनाएं एक अघोषित विचार की राजनीति के तहत ही सामने आती हैं जिसमें जाति की श्रेष्ठता का सिद्धांत काम करता है लेकिन अब तक इन जातिगत अत्याचारों को आतंकवाद की तरह नहीं देखा गया था जबकि उनके असर और परिणामजे में उच्च कही जाने वाली जातियों की ओर से निचली कही जाने वाली जातियों पर ढाए जाने वाले जुल्म आतंकवाद से ज्यादा जटिल और त्रासद हैं*
*आतंक का संदर्भ केवल कुछ विशेष प्रकृति की घटनाओं तक समेट देने के खेल को भी समझा जाना चाहिए कि क्या यह किसी सामाजिक व्यवस्था में रची-बसी या पल-बढ़ती रही वैसी परंपराओं और मानस पर उजागर डालने का जरिया तो नहीं है जिनके सामने आ रहा है से एक संपूर्ण धार्मिक पहचान के सामने मुंह दिखाने लायक मूल्य तक का संकट खड़ा हो जाएगा❗ मौजूदा संदर्भों में कथित बुनियादी ढांचे के आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जरूरी है लेकिन इसकी छिपी हुई शातिर शक्लों की पहचान और उसे मिटाने का सवाल भी उठना चाहिए*
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