_*अंधविश्वास के दौर में श्मशान की सैर _ 

                                                                                           



_*महाराष्ट्र के एक स्कूल द्वारा अप्रत्याशित कदम उठाते हुए बच्चों को श्मशान भूमि की सैर पर ले जाया गया इस सैर का मकसद समाज में श्मशान को लेकर फैली तमाम भ्रांतियों को मिटाते हुए बच्चों में वैज्ञानिक नज़रिया विकसित करना था बच्चों के स्कूल की पिकनिक या उनकी सैर किसी ऐतिहासिक स्थान पर या किसी हिल स्टेशन पर या समुद्र किनारे किसी मशहूर जगह पर जाती रहती है इस बात से हरेक वाकिफ हैं लेकिन अगर कोई स्कूल अपने बच्चों को श्मशान भूमि की सैर कराए तो आप क्या कहेंगे ❓दरअसल पिछले दिनों सूबा महाराष्ट्र के सोलापुर जिले का एक छोटा स्कूल इसी वजह से अख़बारों की सुर्खियां बना जब पता चला कि स्कूल के संचालकों ने विद्यार्थियों को अपने नगर के मोक्षभूमि की सैर कराई और उनके मन में उठते तमाम सवालों के जवाब दिए.मुख्यतः वंचित तबकों के विद्यार्थियों के लिए चल रहे इस स्कूल के बच्चों की इस अलग किस्म की ‘पिकनिक’ में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी भरपूर सहयोग दिया दरअसल इस सैर का मकसद बच्चों में वैज्ञानिक नज़रिया विकसित करना था.मालूम हो कि समाज में श्मशान को लेकर तरह तरह की भ्रांतियां मौजूद रहती है मनुष्य की हड्डियों में मौजूद फास्फोरस धातु के चलते वहां पड़ी लाशों में अचानक आग लगने की परिघटना सामने आती है जिससे ऐसी भ्रांतियों को मजबूती मिलती है और भूत-प्रेत की तमाम कहानियां भी मनुष्यों के मन को इस कदर डर से भर देती हैं कि इन सभी मामलों में वस्तुनिष्ठ विश्लेषण भी नहीं हो पाता.More in Featured :राष्ट्र निर्माण के लिए विधायिका और न्यायपालिका को साथ काम करना चाहिए: जस्टिस रंजन गोगोई2000 रुपये का नोट बंद करने का कोई प्रस्ताव नहीं: केंद्रपैन को 31 मार्च तक आधार से जोड़ना अनिवार्य: आयकर विभागयस बैंक मनी लॉन्ड्रिंग मामला: अनिल अंबानी के बाद सुभाष चंद्रा, नरेश गोयल समेत कई उद्योगपति तलबसीएए का विरोध करने वाले कोरोना वायरस की तरह ख़तरनाकः योगी आदित्यनाथदेश में कोरोना वायरस से तीसरी मौत संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 126 हुईबचपन से ही डर के यह संस्कार बच्चों के मन में अंकित किए जाते रहते हैं अपने परिवार के किसी आत्मीय की अचानक मौत भी उन्हें अंदर से विचलित किए रहती है इन्हीं मसलों को संबोधित करने के लिए इसका आयोजन हुआ यह एक सकारात्मक है कि स्नेहग्राम प्रकल्प के तहत इस स्कूल के इस कदम की तारीफ हो रही है और इलाके के अन्य स्कूल भी ऐसे कदम के बारे में सोचते दिखाई दे रहे हैं वैसे श्मशान भूमि की ऐसी  सैर  का यह पहला प्रसंग नहीं है भले ही इस सैर में बच्चे नहीं बल्कि बुजुर्ग शामिल रहे हों मिसाल के तौर पर डेढ़ साल पहले आंध्र प्रदेश के पश्चिमी गोदावरी जिले के पलाकोले विधानसभा से चुने गए तेलुगूदेशम के विधायक निम्मला रामा नायडू अपनी ऐसी कार्रवाई से राष्ट्रीय सुर्खियों में आए जब उन्होंने निर्माण मजदूरों में फैले भूत-प्रेत के डर को दूर करने के लिए यह अनोखा कदम उठाया अपनी चारपाई लेकर वह एक शाम श्मशान में सोने चले गए और इस बात का भी ऐलान कर दिया कि वह अगले कुछ दिनों तक यही करने वाले हैं दरअसल सरकार द्वारा इस श्मशान के आधुनिकीकरण के लिए धनराशि आवंटित होने पर सबसे बड़ी बाधा यह आयी कि इस काम के लिए कोई ठेकेदार नहीं तैयार हुआ और जब अंततः तैयार हुआ तो श्मशान में अधजले शव को देखकर निर्माण मजदूरों ने वहां लौटने का नाम ही नहीं लिया इसी तरह हम याद कर सकते हैं कि कर्नाटक में जिन दिनों कांग्रेस का शासन था और सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे तब उन दिनों भूतों-प्रेतों के अस्तित्व या उनके ‘विचरण’ को लेकर समाज में व्याप्त भ्रांत धारणाओं को चुनौती देने के लिए कर्नाटक के बेलागावी सिटी कार्पोरेशन के अंतर्गत आते वैकुंठ धाम श्मशान में कर्नाटक के एक्साइज मंत्री सतीश जरकीहोली ने सैकड़ों लोगों के साथ रात बिताई थी और वहां भोजन भी किया था.याद रहे कि महाराष्ट्र की तर्ज पर कर्नाटक विधानसभा में अंधश्रद्धा विरोधी बिल लाने में अत्यधिक सक्रिय रहे मंत्री महोदय दरअसल लोगों के मन में व्याप्त इस मिथक को दूर करना चाहते थे कि ऐसे स्थानों पर भूत निवास करते हैं इस बिल का मसौदा भी बनाया गया था मगर विभिन्न किस्म की रूढ़िवादी व पुरातनपंथी ताकतों के विरोध के चलते उसका भी विरोध होता रहा था.महाराष्ट्र के स्कूल संचालकों के अनोखे कदम पर गौर करें या आंध्र प्रदेश एवं कर्नाटक के राजनेताओं की ऐसी सक्रियता देखें जिसके तहत उन्होंने भारत की संविधान की धारा 51 ए- जो मानवीयता एवं वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने में सरकार के प्रतिबद्ध रहने की बात करती है- उसकी हिफाजत में कदम उठाया निश्चित ही हौसला जगाती है क्योंकि यह ऐसी आवाज़ें हैं जो संविधान के सिद्धांतों को अमली जामा पहनाने के लिए बेहद प्रतिकूल समय में प्रयत्नशील हैं दरअसल यह एक ऐसा समय है जब किसी राज्य में बरसात के लिए किसी मंत्री द्वारा मेंढकों की शादी कराने जैसे उद्यम किए जा रहे हों या देश की विधानसभाओं में सदस्यों की असमय मौत के नाम पर भूतबाधा की चर्चा में सदस्य मुब्तिला हो जाते हों किसी अन्य राज्य के मंत्री महोदयों के ऐसे वीडियो वायरल होते हों कि वह झाड़-फूंक करने वालों के सम्मान समारोह को सुशोभित कर रहे हैं या वास्तु दोष को ठीक करने के नाम पर सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये लगाकर सत्ताधारी लोग अपने दफ्तरों आवासों में बदलाव करते दिखते है कोई भी यह कह सकता है कि भारत को अगर 21वीं सदी में आर्थिक महाशक्ति बनना है तो उसे निश्चित ही व्यापक स्तर पर जनमानस में बदलाव लाना होगा इस मामले में लंबे समय से प्रयत्नशील अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति ने तो एक नई मिसाल ही कायम की है*_


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