ग़ज़ल (बलजीत सिंह बेनाम)


जब ज़माने ने कभी की है बुराई दोस्तो
बात हमने तब हँसी में है उड़ाई दोस्तो


वक़्त के वो फ़लसफ़े को भूल जाए किस तरह
उम्र जिसने भी ग़रीबी में बिताई दोस्तो


आप से इतनी गुज़ारिश लाज़िमी अब हो गई
बेबहर शे रों पे न देना बधाई दोस्तो


था जहाँ विश्वास उसमें वास विष का हो गया
नाख़ुदा ने ही सदा कश्ती डुबाई दोस्तो


कुछ कहे बिन ही अदालत से बरी हो जाता है
एक अपराधी नहीं देता सफ़ाई दोस्तो


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