प्राचीनकाल में भारत में नहीं होते थे धर्म के नाम पर युद्ध


प्राचीनकाल में भारत में कभी भी कोई युद्ध धर्म के लिए नहीं लड़ा गया,धर्म के आधार पर कहीं किसी राजा के पास कोई प्रतिबद्धता भी नहीं थी,पर आज भारत में रहने वाले मुसलमानों को सिर्फ धर्म के आधार पर ही आतंकी और देशद्रोही की नजर से देखा जाता है जो साम्रदायिक आतंक का एक बहुत बड़ा उदाहरण है,जबकि इससे पहले ऐसा कभी भी नहीं होता था
,हिन्दू हो या मुस्लिम,सिक्ख हों या ईसाई सभी में आपस में भाईचारे का ही सद्भावनापूर्ण व्यवहार और संबंध होता था.
   जिस प्रकार शिवाजी के पास मुसलमान सरदार और सेना थी उसी प्रकार मुसलमान राजाओं के पास भी अनगिनत मराठे और हिन्दू सरदार थे,स्वयं शिवाजी के पिता और स्वसुर बीजापुर की आदिलशाही के एक बड़े सरदार थे,शाहजी महाराज के स्वसुर,सखुजी जाधव महाराष्ट्र की निजामशाही के एक जमींदार थे,जावली के मोरे,फल्टन के निम्बालकर, सामंतबाड़ी के खेम सामंत,श्रृंगारपुर के सूर्यराव, ये सभी आदिलशाही के पदाधिकारी थे.



   जिनकी ही सैन्य शक्ति और दांवपेंच के कारण शिवाजी को पराजय स्वीकार करनी पड़ी,और अपमानजनक समझौता करके संभाजी के साथ आगरा में बंदी बनना पड़ा,वह मिर्जा राजे जयसिंह उत्तर का नामी गिरामी कट्टर राजपूत हिन्दू था और फिर भी मुस्लिम शहंशाह के पास काम करता था,और जब मिर्जा राजे जयसिंह ने धावा बोला तब उसकी सेना में कई हिन्दू,सरदार थे जाट थे,मराठा थे,राजा जयसिंह सिसोदिया,सुजानसिंह बुंदेला,हरिभान गौर,शेरसिंह राठौर,चतुर्भुज चौहान,मित्रसेन,इंद्रभान बुंदेला,बाजी चंद्रराव ,और गोविंदराव आदि थे.
  कोंडाना किले पर कब्जा करते समय तानाजी मालुसरे वीरगति को प्राप्त हुए और भी कोंडाना का नाम सिंहगढ़ पड़ा,उस युद्ध में शामिल कोंडाना का किलेदार उदयभानु एक हिन्दू राजपूत ही था,जो मुसलमान राजा का किलेदार था.
   अकबर के पास 500 से अधिक मनसब पाने वाले जितने भी सरदार थे,उनमे से हिन्दू सरदारों की संख्या 22.5 प्रतिसत थी,शाहजहाँ के शासनकाल में यह यह संख्या 22.4 प्रतिसत थी,और सभी मुस्लिम शासकों में जिंन्हे सबसे कट्टर माना जाता है,उस औरंगजेब के पास सुरुवात में 21.6 प्रतिसत हिन्दू पदाधिकारी थे,जो बाद में बढ़कर 31.6 प्रतिसत तक हो गए थे.
   औरंगजेब ने ही राजा जसवंत सिंह नामक हिन्दू राजपूत को सूबेदार नियुक्त किया था,इसी औरंगजेब का प्रथम प्रधान रघुनाथ एक नामी हिन्दू था,जो स्वयं राजपूत होते हुए भी राजपूतों के विरुद्ध लड़ा था,महाराणा प्रताप की सेना का एक सेना नायक हकीम खान नूर एक मुसलमान था,पेशवाओं का तोपखाना प्रमुख इब्राहिम गार्दी था.
   जो हिन्दू-मुसलमान राजाओं के पास ईमानदारी और विस्वास के साथ चाकरी करते थे,और अपने मालिको के प्रति पूरी निष्ठा रखते थे,वे हिंदुओं के विरुद्ध भी युद्ध करते थे,पर उन्हें उस युग में किसी ने भी "धर्म डुबोने वाले" या "धर्म विरोधी"या "मुस्लिम परस्त" नहीं कहा,जिससे साबित होता है कि उस समय स्वामीनिष्ठा की मान्यता धर्मनिष्ठा से कहीं अधिक थी.
    प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में धर्म के कारण या धर्म के लिए कभी भी युद्ध नहीं होते थे,युद्धों का प्रमुख उद्देश्य शासन प्राप्ति ,प्रदेश हथियाना और उन्हें कायम रखना ही था जिसमे किसी भी तरह की धार्मिक वैमनस्यता के लिए कहीं कोई जगह नहीं होती थी,जैसा कि आमतौर पर आज होता है.
 "शिवाजी कौन थे-पृष्ठ-30-31"


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