विश्व के कुल दूध उत्पादन का 22 फ़ीसदी भारत प्रत्येक वर्ष देता है योगदान



  • उत्तर प्रदेश में वर्तमान दूध उत्पादन 305.19 लाख टन हैदूध उत्पादन को बढ़ाने में हरे चारों की महत्वपूर्ण भूमिका है


कानपुर। भारत कृषि प्रधान देश है जिसमें 72% से अधिक जनसंख्या गांव में रहती है जिनके जीवन यापन का मुख्य स्रोत कृषि एवं कृषि आधारित उद्योग ही हैं। करीब 70 करोड़ कृषक परिवारों में से प्रति दो ग्रामीण घरों में एक पशुपालन या डेरी उद्योग से जुड़ा हुआ है। भारत में 70% दूध की आपूर्ति लघु ,सीमांत व भूमिहीन किसानों के द्वारा किया जाता है। देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में पशु पालन की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत प्रत्येक वर्ष विश्व के कुल दूध उत्पादन का 22 फ़ीसदी योगदान देता है। तथा डेयरी उद्योग प्रतिवर्ष 5.6% की दर से बढ़ रहा है। वर्तमान में देश में दूध का कुल उत्पादन 53.5 मिलीयन मेट्रिक टन है। जिसको 108 मिलीयन मेट्रिक टन 2025 तक किए जाने का लक्ष्य है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान दूध उत्पादन 305.19 लाख टन है। दूध उत्पादन को बढ़ाने में हरे चारों की महत्वपूर्ण भूमिका है जिसकी कमी से दूध उत्पादन प्रभावित होता है विश्वविद्यालय के निदेशक शोध डॉ एच जी प्रकाश ने बताया कि विश्वविद्यालय में भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान झांसी के सहयोग से गोल्डन जुबली फाेरेज गार्डन की स्थापना की गई है। जिसके अंतर्गत विश्वविद्यालय कार्यक्षेत्र में उगाई जाने वाली सभी तरह की घांसों तथा फसलों का प्रदर्शन किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पशुपालकों को दुधारू पशुओं को खिलाने के लिए हरे चारे की समस्या होती है। तथा उन्हें मक्का, ज्वार, बरसीम, लोबिया आदि चारा फसलों से सिर्फ 4 से 5 महीना ही हरा चारा मिलता है। उन्होंने कहा कि ऐसे में पशु पालक नेपियर घास लगाकर 4 से 5 वर्ष तक हरा चारा प्राप्त कर सकते हैं। नेपियर घास की रोपाई का समय वर्षा काल में ही होता है यह घास 20 से 25 दिन में तैयार हो जाती है तथा इसमें 9.9 प्रतिशत से 17.5% प्रोटीन, 26.5 से 33.6% रेशे, 2.4 से 4.5% वसा तथा 6 से 8.4% खनिज लवण होते हैं। खनिज लवण में कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। डॉक्टर प्रकाश ने बताया की वर्तमान में घासों की तीन फसलें गनी घास, नेपियर घास, तथा टी एस एच घासें उगाई जा रही हैं । निदेशक शोध ने बताया कि दुधारू पशुओं के लिए 2.5 किलोग्राम दूध उत्पादन पर एक किलोग्राम रातव तथा गायों हेतु 3 किलोग्राम दूध उत्पादन के लिए एक किलोग्राम रातव की आवश्यकता होती है। जबकि रोजमर्रा के जीवन निर्वाहन हेतु एक किलोग्राम अतिरिक्त रातव की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा की गुणवत्ता युक्त हरा चारा उपलब्ध है तो रातव की मात्रा में कटौती की जा सकती है। जिससे पशुपालक भाइयों का व्यय में कमी होगी व अधिक दुग्ध उत्पादन होगा व पशु पालको को  अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। एवं आमदनी में बढ़ोतरी होगी। विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह ने बताया कि विश्वविद्यालय में गोल्डन जुबली फाेरेज गार्डन की स्थापना से पशुपालकों को उच्च प्रशिक्षण  प्रदान किए जाएंगे। जिससे दूध उत्पादन में आशातीत वृद्धि होगी। व शासन द्वारा निर्धारित दूध उत्पादन लक्ष्य प्राप्त करने में विश्वविद्यालय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।

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