चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया की गेंदे में प्रमुख रूप से कीट एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है सर्दियों में प्रमुख रूप से सफेद मक्खी एवं मांहू का अधिक प्रकोप होता है यह छोटे जीव होते हैं और पत्तियों तथा फूलों से रस को चूस लेते हैं
प्रदेश के किसानों की आय को बढ़ाने में सजावटी गेंदे की खेती बहुत लाभप्रद सिद्ध हो रही है आज कें परिवेश में जहां किसान परंपरागत खेती करते रहे हैं,वहां पर आधुनिक खेती में गेंदे की फसल को सम्मिलित करके कम समय में किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है, गेंदे की खेती वर्ष भर की जा सकती है इसके लिए मुख्य रूप से अफ्रीकन गेंदा और फ्रेंच गेंदा बहुत ही सरल तरीके से उगाया जा सकता है। इसकी खेती जिस भूमि का पीएच 6.50 से 7.0 के बीच हो, बलुई दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। गेंदा औषधिय गुणों से भरपूर होता है इसमें एंटीफंगल, एंटी- बैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, प्रमुख रूप से त्वचा संबंधी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए इसकी पत्तियों का रस बहुत उपयोगी होता है, ऐसे तो गेंदा की परंपरागत किस्मे बहुत सी हैं पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसंती गेंदा, अपोलो, अर्का हनी, ऑरेंज लेडी, गोल्डी, कारमेन अच्छी किस्में है यह किस्मे पूरे वर्ष उगाई जाति हैं । गेंदा 30 -35 दिन में तैयार हो जाता है। किसान भाइयों को गेंदे की नर्सरी डालते समय निम्न बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए नर्सरी सदैव 15 सेंटीमीटर ऊंची बनानी चाहिए, नर्सरी में सड़ी हुई गोबर की खाद तथा नीम की खली का प्रयोग करना चाहिए साथ में ब्यूबेरिया बैसियाना को अच्छी तरीके से नर्सरी की मिट्टी में मिला देना चाहिए जिससे बीमारियों का प्रकोप कम होगा प्रमुख रूप से नर्सरी के बीमारी को प्रबंधित करने के लिए ट्राइकोडरमा पाउडर का भी प्रयोग करना चाहिए 1 एकड़ गेंदा के लिए 200 ग्राम बीज उपयुक्त होता है। गेंदे की नर्सरी 4 से 5 सप्ताह में तैयार हो जाती है, खेतों की अच्छी तरह से जुताई करके उसमें 120 कुंतल सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से तथा 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश पौध रोपाई से पहले मिला देना चाहिए अफ्रीकन गेंदा की पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा फ्रेंच गेंदा की पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर एवं पंच सरपंच की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए आवश्यकता अनुसार समय-समय पर नाइट्रोजन का भुरकाव करते रहना चाहिए। चंद्र भानु गुप्ता कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया की गेंदे में प्रमुख रूप से कीट एवं बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है सर्दियों में प्रमुख रूप से सफेद मक्खी एवं मांहू का अधिक प्रकोप होता है यह छोटे जीव होते हैं और पत्तियों तथा फूलों से रस को चूस लेते हैं शहद का स्राव करते हैं जिससे बीमारी का भी खतरा रहता है इसको प्रबंधित करने के लिए 2ml वाईपर प्लस नामक कीटनाशक को लेकर उसको 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर के छिड़काव करना जनवरी माह में प्रमुख रूप से गेंदे में झुलसा की बीमारी बहुत अधिक लगती है इससे पहले पत्तियों के ऊपर जलने जैसे लक्षण दिखाई देते हैं उसके बाद पूरा फूल सूख जाता है यह बहुत ही गंभीर बीमारी है, इस बीमारी को प्रबंधित करने के लिए डाईथेन एम-45 फफूंदी नाशक की 3 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव लाभप्रद होता है। किसान भाई वैज्ञानिक तरीके से अपनी फसल तैयार कर लेते हैं तो धान गेहूं की अपेक्षा इसमें अच्छी आमदनी हो जाती है।
Comments
Post a Comment