ग्याहरवीं शरीफ' के रूप में अकीदत के साथ मनाया गया जलसा गौसुलवरा जुही लाल कॉलोनी स्थित अम्बेदकर नगर में आयोजित हुआ जलसा
हजरत सैयदना शैख अब्दुल कादिर जीलानी (बड़े पीर साहब) की 'ग्याहरवीं शरीफ' के रूप में अकीदत के साथ मनाया गया जलसा गौसुलवरा। जिसमें उलेमा-ए-किराम ने शैख अब्दुल कादिर के जिंदगी पर रोशनी डाली।
इस जलसे की सरपरस्ती हजरत अल्लामा व मौलाना व मुफ़्ती मोहम्मद साकिब अदीब मिस्बाही साहब किब्ला काजी ए शहर कानपुर ने की।
जलसा का आगाज़ क़ुरान ए पाक की तिलावत से हाफ़िज़ इकरार अहमद साहब ने किया।
वसीक अहमद साहब की ओर से जुही लाल कॉलोनी स्थित अम्बेदकर नगर में आयोजित हुआ जलसा।
जलसा-ए-गौसुलवरा में मुख्य वक्ता मोहम्मदिया जामा मस्जिद उन्नाव से आये हुये मौलाना आफताब आलम क़ादरी साहब ने कहा कि हजरत सैयदना शैख अब्दुल कादिर जीलानी ने दीन-ए-इस्लाम की आबियारी की। आपने दीन-ए-इस्लाम को फैलाया। पूरी जिंदगी पैगंबर-ए-आजम हजरत मोहम्मद साहब की पाकीजा सुन्नतों पर अमल कर कुर्बें इलाही हासिल किया। आपका पैगाम सभी के लिए है। मौलाना ने कहा कि हम औलिया को अल्लाह का महबूब बंदा मानते हैं और ये अकीदा रखते हैं की अल्लाह इनकी दुआओं को कभी रद्द नही करता, तो अगर ये हमारे हक में अल्लाह की बारगाह में दुआ कर दें तो हमारा भी भला हो जायेगा। दिल को अल्लाह के जिक्र से खाली नहीं रखना चाहिए। मौलाना ने कहा कि इश्क दो किस्म का होता है, पहला इश्क-ए-मिजाजी यानी जो नफ्स (इंद्री) के लिए होता है और दूसरा इश्क-ए-हकीकी, जो कि अल्लाह से होता है। अल्लाह के महबूब बंदों (औलिया) से मोहब्बत इसी लिए की जाती है कि वो अल्लाह के महबूब हैं, तो उनसे मोहब्बत करना हकीकत में अल्लाह ही से मोहब्बत करना है। जो अल्लाह का हो जाता है तो सारी कायनात उसकी हो जाती है। आगे मौलाना ने कहा कि औलिया-ए-किराम का फैज सभी पर है। उनकी जिदंगी हमारे लिए मिसाल है, उस पर अमल करके अल्लाह और पैगंबर-ए-आजम की नजदीकी हासिल की जा सकती है।
जलसे में मौलाना इसरार अहमद क़ादरी साहब, हाफ़िज़ कफ़ील हुसैन खान, वसीक अहमद, मोहम्मद इमरान खान, छन्गा पठान, रिजवान अहमद, इरशाद अहमद, शफीक अहमद, नफीस अहमद, हसन, ननकू, रहीम खान, मुख्तार खान, निसार खान, निसार अहमद, इम्तियाज अहमद, सेठू, इनायत अली, जाकिर खान उर्फ नग्गन आदि मौजूद रहे।
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