क्रांतिकारी तीर्थ समारोह, साहित्य भवनसाहित्यकार गोष्टी का दौलत गंज ग्वालियर में आयोजन

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साहित्य भवन दौलत गंज ग्वालियर में आज ,अखिल भारतीय साहित्य परिषद मध्य भारत प्रांत द्वारा  क्रांतिकारी तीर्थ आयोजन के अंतर्गत महिला साहित्यकार गोष्टी का आयोजन  हुआ मंच का संचालन जानवी कर रही थी एवं मुख्य अतिथि के रूप में साहित्यिक मंच के अध्यक्ष डॉ. कुमार संजीव, सूश्री कुंदा जोगलेकर , श्रीमती सुनीता पाठक उपस्थित हुए।
, साथ ही मंच की साहित्यिक मंत्री मंदाकिनी, संयोजक करुणा सक्सेना  एवं भारत तिब्बत सहयोग मंच एवं अखिल भारतीय संयुक्त अधिवक्ता मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष मोनिका जैन एडवोकेट और डॉक्टर रेखा  उपस्थित हुए।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में सभी मंचासीन अतिथियों ने दीप प्रज्वलन किया एवं बालिकाओं द्वारा सरस्वती वंदना की कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई, इसके पश्चात सभी मंचासीन अतिथियों ने अपने अपना व्याख्यान दिया। कार्यक्रम में जया अग्रवाल मीडिया प्रभारी मध्य प्रदेश ने नाइन वन टाइम्स से बातचीत में बताया इस समारोह में शिवपुरी में होने जा रहे हैं क्रांतिकारी तीर्थ आयोजन समारोह की भी जानकारी दी गई।
यहां समारोह 11 जून को शिवपुरी में किया जाएगा। यहां जानकारी अध्यक्ष कुमार संजीव जी ने दी, कार्यालय प्रमुख पिंटू ने अतिथि गणों का आभार व्यक्त किया।

कुंदा जी ने अपने पारिवारिक अनुभव को साझा किया जो उन्होंने अपने परिवार में क्रांतिकारी अनुभव देशभक्ति की भावना का अनुभव किया था उसे साझा किया एवं गोवा में बने काले पानी की सजा वाले जेल के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को साझा किया।
इसके साथ ही उन्होंने  वीर सावरकर जी के ऊपर लिखी हुई कविता का व्याख्यान किया।


इसी क्रम में सभी सदस्यों एवं अतिथियों ने शहीदों एवं क्रांतिकारियों राष्ट्रप्रेम के बारे में अपना अपना अनुभव एवं अपना अपना ज्ञान को साझा किया, साथ ही अपनी अपनी कविताओं का व्याख्यान किया उसमें से कुछ इस प्रकार हैं

शिवम:-"मां के लिए मैं क्या लिखूं"
मां के ऊपर लिख सकूं मैं, इतनी मेरी औकात नहीं है
 मां के ऊपर लिख सकूं मैं, इतनी मेरी बाजुओं में ताकत नहीं है।

डॉ. रेखा:- वंदन भारती की वो गाती रही ,
क्रांति कि वह मशाल जलती रही, लक्ष्मीबाई को रेखा का सादर नमन।

प्रतिभा:- सशक्तिकरण महिला का चेहरा, सरोजिनी के रूप में जान रहे,
उनके संघर्षों के पथ से उनको राजनीति तक पहचान रहे।

सुनीता:- अनाम शहीदों का स्मरण,
वह देश के गर्वित कीर्ति स्तंभ।
पलक:- तीन रंग का चोला ओढ़े, आय आय अमर पवार,
कतरा कतरा लहू बहाया, वतन की खातिर लहूलुहान।

करुणा:- मैं सैनिक की छांह हूं,
मन में धारू धीरे, दुनिया से मुन्दकाय हूं, मैं अखियांन की पीर।

हिंदी साहित्य भवन अनेकों वर्षों से हिंदी साहित्य को संभाले रखने के लिए ग्वालियर में जाना जाता है,


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