तहसीलदार व नायब तहसीलदार ने किया गोमती नदी की 200 करोड़ की जमीन का घोटाला ईडी की जांच शुरू

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 गोमती नदी की जमीन को लेकर फर्जीवाड़े का खेल वर्ष 2006 में ही शुरू हो गया था। लेकिन अंजाम वर्ष 2015 में दिया गया। बिल्डर राजगंगा डेवलपर को जमीन देने में घोटाला किया गया
यूपी। लखनऊ में फर्जीवाड़ा कर बिल्डर को गोमती नदी की 200 करोड़ की जमीन देने के मामले में तहसील व एलडीए के कई अफसर ईडी की जांच के दायरे में आ गए हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के असिसटेंट डायरेक्टर जयकुमार ठाकुर ने घोटाले की जांच शुरू कर दी है। उन्होंने आठ नवम्बर को पत्र भेजकर मामले में तहसील व एलडीए से घोटाले से जुड़े दस्तावेज तलब किए हैं। उन अधिकारियों के नाम भी मांगे हैं जिन्होंने घोटाले को अंजाम दिया। ईडी का पत्र आने के बाद प्रशासन व एलडीए में हड़कम्प मच गया है। ईडी पत्र में साफ लिखा है कि मामले में तत्काल कार्रवाई की जानी है। इसलिए केस से जुड़े दस्तावेज अतिशीघ्र उपलब्ध कराए जाएं।
गोमती नदी की जमीन को लेकर फर्जीवाड़े का खेल वर्ष 2006 में ही शुरू हो गया था। लेकिन अंजाम वर्ष 2015 में दिया गया। बिल्डर राजगंगा डेवलपर को जमीन देने में घोटाला किया गया। इस घोटाले में तहसील सदर के तत्कालीन तहसीलदार व नायब तहसीलदार ने बड़ी भूमिका निभाई। 18 नवम्बर 2006 को तत्कालीन सदर तहसीलदार, चिनहट क्षेत्र के नायब तहसीलदार व राजस्व कर्मियों ने भौतिक सत्यापन कर एलडीए को एक रिपोर्ट भेजी थी। जिसमें खसरा संख्या 673 क की जमीन को नदी से बाहर दिखाया था। रिपोर्ट में सदर तहसील के अधिकारियों ने लिखा कि उक्त खसरे की जमीन नदी के सम्पर्क में नहीं है। तहसील की रिपोर्ट के बाद एलडीए के तत्कालीन सहायक अभियंता भूपेंद्रवीर सिंह ने प्राधिकरण के अमीन अरविन्द श्रीवास्तव, श्रीराम प्रताप, नायब तहसीलदार शरदपाल के साथ स्थल का निरीक्षण किया तो उक्त भूमि नदी के बीच में मिली। नदी के बीच में होने से यह जमीन प्राधिकरण के किसी काम की नहीं थी। सहायक अभियन्ता ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा भी कि जमीन प्राधिकरण के उपयोग की नहीं है। ऐसे में इसके समायोजन का कोई औचित्य नहीं है। सहायक अभियन्ता की रिपोर्ट पर फाइल बंद हो जानी चाहिए थी। जो नहीं हुई।

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